काव्यवेणा
Sayali Pilankar's Blog....
शनिवार, १३ सप्टेंबर, २०१४
पलाशपर्ण...
पलाशके पर्ण को
रखा जायें अगर
किताब के पन्नोंमें
झर जाता है हरा रंग
धीरे धीरे...
रह जाती है झुर्रियां
दबें पन्नोंके बीच
ऐसी किताबमें
जो खुलती है
सिर्फ एक बार
उस पलाशपर्ण को
अपने अंदर
समाने के लिये...
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