गुरुवार, १८ सप्टेंबर, २०१४

जवाब

कई सवाल दफ़न है

कई जगह

जिस्म के कई कोनोंमे.

कभी कान पूछते है मुझसे

तुम सुनकर भी क्यों अनसुना कर देती हो

कई बातोंको,

कभी आँखे पूछती है मुझसे

तुम देखकर भी क्यों अनदेखा कर देती हो

कई चीजोंको,

कभी नाक पूछती है मुझसे

क्यों सूंघ नहीं पा रही हो तुम इर्दगिर्द

सुलगते बारुदको,

कभी जबान पूछती है मुझसे

क्यों कतराती हो सच बोलनेसे

हर वक्त हर जगह,

आजकल तो जिस्मका हर जर्रा पुछनेपर

उतारू है,

मुझे किसका डर है,

किसका खौफ़ है

जो मुझे ना जीने दे रहा है ना मरने.

सवालोंसे घिरी मै

खड़ी हूं

सवालोंके सामने,

जुबाँपर सच

सहमां हुवा

फिरभी लड़खड़ाते हुवे

मैंने जवाब दिया

‘मै स्वतंत्र भारत की नागरिक हूं...’

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